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26 Dec 2017 · 1 min read

नवका जमाना (भोजपुरी कविता)

नवका जमाना…..!!
—– ——- ——-
आईल घोर कलयुग भरल सगरो हताशा
जेने देखीं ओने लऊके बीगड़ल जमाना,
कइसन ई जुग आईल कइसन ई जमाना
कइसन – कइसन खेल कईसे होत बा तमाशा।।१।।

बबुआ बबुनी घुमत बाड़े बाईक पर सटके
लाज लजाई बाकीर बईठी नाही हट के,
बापू , भाई देखे देखे सगरो जमाना
कइसन – कइसन खेल कईसे होत बा तमाशा।।२।।

बबुआ बड़का बाल राखे मोछ राखे छील के
बबुनी के चाल बीगड़ल, सेन्डिल ऊचा हील के,
शरम सगरो छुटल उठल लाज के जनाजा
कइसन – कइसन खेल कईसे होत बा तमाशा।।३।।

माई बाबू तीत भईलें रोजे बा तमाशा
सास ससुर मीठ जईसे चीनीया बतासा,
बाप माई बोझ लागे ससुर भाग्य दाता
कइसन – कइसन खेल कईसे होत बा तमाशा।।४।।

कहाँ से हम शुरू करीं कहाँ ले हम जाईं
भाई – भाई मुदई भईले रोजे बा लड़ाई,
चोरी कईके घरमें करे भाई से बहाना
कइसन – कइसन खेल कईसे होत बा तमाशा।।५।।

खोज ना खबर तनिको बाटे माई बाप के
बबुआ फुटानी जोते जघे जघे चांप के,
बबुआ निकम्मा खेरलस बाप के हताशा
कइसन – कइसन खेल कईसे होत बा तमाशा।।६।।

जेने देखीं झूठ-सांच पाप के बाजार बा
पापीयन के चलत नाहीं दउड़त सरकार बा
धरम करम पर जे रहे खायेला तमाचा
कइसन – कइसन खेल कईसे होत बा तमाशा।।७।।
……………..✍
पं.संजीव शुक्ल “सचिन”

Language: Hindi
507 Views
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