Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
12 Oct 2020 · 2 min read

नयी जगह नयी पहचान

कविता

( नयी जगह नयी पहचान)

आज चुपके से मुझे वो अलवेली मिली थी,
उसकी आँखों में नमी चेहरे पर माँसूमियत ढली थी,|

समय के इस भँवर में वो ही चल पढी़ थी,
मैं तो वहीं खडा़ था बस वो ही निकल पढी़ थी,|

ये कैसा था समय ये कैसी वो घड़ी थी,
कल तक जो रूला रही थी आज खुद ही रो पढी़ थी,

एक समय था हमारा उसकी ये एक ही घडी़ थी,
नहीं थे हम खुश किसीके आने की पढी़ थी,

आज चुपके से मुझे वो अलवेली मिली थी,
उसकी आँखों में नमी चेहरे पर माँसूमियत ढली थी,

न थी उसकी पहचान वो चुपके से खड़ी थी,
कैसे वो कहे हमसें कैसी वो घड़ी थी,

हाथ बढा़ कर किया इशारा समय की वो क्या घड़ी थी,
जगह वो अजनबी थी मन में उठी हड़बडी़ थी,

नयी वो जगह थी वह खूबी से खड़ी थी,
रिश्तों को निभानें में हमसें भी वो बढी़ थी,

जाना था कहीं पर वो मुझे बुला रही थी,
मुझे साथ लेकर वो वहीं निकल पढी़ थी,

नयी वो जगह थी वहा कयी सालों बाद वो खडी़ थी,
बस उसकी ही पहचान और वो मैरे साथ में खड़ी थी,

पहचान नहीं मैरी वो परिचय करा रही थी,
हर समय वो मैरे वहाँ पर साथ में खड़ी थी,

मैं था वहाँ पर उसको मैरी ही पढी़ थी,
क्या वो समय था क्या वो घड़ी थी,

आज चुपके से मुझे वो अलवेली मिली थी,
उसकी आँखों में नमी चेहरे पर माँसूमियत ढली थी,

आज भी वहीं मुस्कान वहीं माँसूमियत में खड़ी थी,
समय दिन साल और बस ऊमर अब बढी़ थी,

कैसी ये किस्मत उसकी कर्म की जली थी,
वो खुशियाँ विखेरतीं उसको रूला रही थी,

सभी समय की समस्याओं को झेलकर वो मुसकुरा रही थी,
अपने रिश्तों को वो वह खूबी निभा रही थी,|

Writer–Jayvind singh

Language: Hindi
1 Like · 260 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
💐💐💐दोहा निवेदन💐💐💐
💐💐💐दोहा निवेदन💐💐💐
भवानी सिंह धानका 'भूधर'
मुक्तक
मुक्तक
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
फूल यूहीं खिला नहीं करते कलियों में बीज को दफ़्न होना पड़ता
फूल यूहीं खिला नहीं करते कलियों में बीज को दफ़्न होना पड़ता
Lokesh Sharma
तेरी गोरी चमड़ी काली, मेरी काली गोरी है।
तेरी गोरी चमड़ी काली, मेरी काली गोरी है।
*प्रणय*
दोहा
दोहा
Shriyansh Gupta
जो अपने दिल पे मोहब्बत के दाग़ रखता है।
जो अपने दिल पे मोहब्बत के दाग़ रखता है।
Dr Tabassum Jahan
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
कमली हुई तेरे प्यार की
कमली हुई तेरे प्यार की
Swami Ganganiya
‘ विरोधरस ‘---4. ‘विरोध-रस’ के अन्य आलम्बन- +रमेशराज
‘ विरोधरस ‘---4. ‘विरोध-रस’ के अन्य आलम्बन- +रमेशराज
कवि रमेशराज
"सन्देश"
Dr. Kishan tandon kranti
*जीवनदाता वृक्ष हैं, भरते हम में जान (कुंडलिया)*
*जीवनदाता वृक्ष हैं, भरते हम में जान (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
अब भी वही तेरा इंतजार करते है
अब भी वही तेरा इंतजार करते है
ठाकुर प्रतापसिंह "राणाजी "
कपट का भाव ईर्ष्या या निजी स्वार्थ से पैदा होता है।
कपट का भाव ईर्ष्या या निजी स्वार्थ से पैदा होता है।
Rj Anand Prajapati
3480🌷 *पूर्णिका* 🌷
3480🌷 *पूर्णिका* 🌷
Dr.Khedu Bharti
समय ही तो हमारी जिंदगी हैं
समय ही तो हमारी जिंदगी हैं
Neeraj Agarwal
“चिट्ठी ना कोई संदेश”
“चिट्ठी ना कोई संदेश”
DrLakshman Jha Parimal
जिंदगी बेहद रंगीन है और कुदरत का करिश्मा देखिए लोग भी रंग बद
जिंदगी बेहद रंगीन है और कुदरत का करिश्मा देखिए लोग भी रंग बद
Rekha khichi
रूप यौवन
रूप यौवन
surenderpal vaidya
I know
I know
Bindesh kumar jha
पेजर ब्लास्ट - हम सब मौत के साये में
पेजर ब्लास्ट - हम सब मौत के साये में
Shivkumar Bilagrami
जनता को तोडती नही है
जनता को तोडती नही है
Dr. Mulla Adam Ali
चाह
चाह
Dr. Rajeev Jain
गंगा सेवा के दस दिवस (द्वितीय दिवस)
गंगा सेवा के दस दिवस (द्वितीय दिवस)
Kaushal Kishor Bhatt
शृंगार छंद और विधाएँ
शृंगार छंद और विधाएँ
Subhash Singhai
कभी-कभी मुझे यूं ख़ुद से जलन होने लगती है,
कभी-कभी मुझे यूं ख़ुद से जलन होने लगती है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
एक संदेश युवाओं के लिए
एक संदेश युवाओं के लिए
Sunil Maheshwari
कुंडलिया
कुंडलिया
Sarla Sarla Singh "Snigdha "
राम रावण युद्ध
राम रावण युद्ध
Kanchan verma
पेड़ से इक दरख़ास्त है,
पेड़ से इक दरख़ास्त है,
Aarti sirsat
बुंदेली दोहा प्रतियोगिता-176 के श्रेष्ठ दोहे पढ़िएगा
बुंदेली दोहा प्रतियोगिता-176 के श्रेष्ठ दोहे पढ़िएगा
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
Loading...