नया साल
नया-साल कुछ इस तरह मनाया जाए।
बे-सहारा को दे सहारा-सहारा बनाया जाए।
गुलशन-ए-नग्मा सजाया जाए।
कोई नग्मा-ए-वफा गाया जाए।
शर्म से सुर्ख इन कपोलों पर।
कहर-ए-अश्क न बरपाया जाए।
आरज़ू है यही बस इस दिल की।
जोडा-ए-सुर्ख से दुल्हन को सजाया जाए।
वफा की राह ही चले दुनिया।
क्यों न नुस्खा-ए-वफा बनाया जाए।
ग़मो को छोड़कर दरिया मे कही।
उठा के पुलिन्दा-ए-खुशी लाया जाए।
सुधा भारद्वाज
विकासनगर