नमामी गंगे
भागीरथी का अथक प्रयास
पृथ्वी पर हो गंगा निवास ,
मोक्ष – दायिनी गंगा
स्वच्छ – दायिनी गंगा ,
गौ मुख से निकलती ये
उन्मुक्त भाव से बहती ये ,
कल – कल – कल बहती ये
हमको तृप्त करती ये ,
स्वच्छ – निर्मल गंगा का बहना
रह जायेगा बस एक सपना ,
समस्त गंदगियोंं को समेटती
स्वच्छता से इसको लपेटती ,
इसके गुणों से निखरे हम
इसके जल से सवरे हम ,
हम स्वार्थी हम कृतघ्न
बस अपने आप में मगन ,
कूड़े से भर दिया माँ को
जो स्वच्छ करती इस जहाँ को ,
हम भूल गये अपनी आदत में
गंगा को पहुँचा दिया किस हालत में ,
आओ अपनी गलती हम सुधारेंं
गंगा को इस नरक से उबारें ,
पहले रोको कुड़ा डालना
इस बात को सब मानना ,
धर्म के नाम पर मनमानी
ये बात नही है किसी को माननी ,
वर्तमान के भविष्य की सोचो
एक दुसरे को नही तुम नोचो ,
सब मिल कर प्रण लो
जो ना माने लड़ लो ,
गंगा को अगर है बचाना
साथ मिल कर कदम है बढ़ाना ,
डालो इसमें कछुये अपार
ये है प्रकृति का उपहार ,
बहुत कम लागत है जिनकी
पर अद्भुत क्षमता है इनकी ,
अपने हाथ पर काबू रखो
कोई गंगा में कुड़ा मत फेको ,
गन्दे नालों को है रोकना
इसको गंगा में नही है झोकना ,
कूड़ेदान का प्रयोग करो
सब मिल कर इसका उपयोग करो ,
वर्तमानके भविष्य को बचायें
आओ गंगा को स्वच्छ बनायें ।
स्वरचित एवं मौलिक
(ममता सिंह देवा , 17/09/18 )