नफ़रत का मंत्र
इम्तिहान का वक़्त है
तुम पीछे हटो नहीं
डंटो वहीं-डंटो वहीं
डंटो वहीं-डंटो वहीं!
जाति-धर्म के नाम पर
आपस में बंटो नहीं
डंटो वहीं-डंटो वहीं
डंटो वहीं-डंटो वहीं!!
जिस्म चाहे हों जुदा
लहू का एक रंग है
ज़ुल्म के ख़िलाफ़ यह
आर-पार की ज़ंग है!
नफ़रत के मंत्र को
तोतों जैसे-रटो नहीं
डंटो वहीं-डंटो वहीं
डंटो वहीं-डंटो वहीं!!
Shekhar Chandra Mitra
#जनवादीकविता #अवामीशायरी
#इंकलाबीशायरी #सृजनचेतना