नफरत की आग
हाँ जरुरत नहीं है मुझे दावानल की
तेरी रुसवाई ही काफी है
मेरी हस्ती मिटाने को
हाँ गैरो ने ही सँभाला है मुझको
अँधेरो मे ठोकरे खाता रहा तेरे दीदार को
अनजाने बन गए तुम सामने आकर
हाँ डूबने वाला था मै गहरे समंदर मझधार
कोशिश कर तैरता रहा तुम्हे पाने के लिए
पर साहिल पर आकर डुब गया
तूफानो मे जा घिरा मै भटकता विराने मे
संघर्षों ने बचा लिया दिलासा बाकी था
सपूर्दे खाक हुआ आकर बहारो में