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5 May 2024 · 1 min read

नफरत की आग

हाँ जरुरत नहीं है मुझे दावानल की
तेरी रुसवाई ही काफी है
मेरी हस्ती मिटाने को

हाँ गैरो ने ही सँभाला है मुझको
अँधेरो मे ठोकरे खाता रहा तेरे दीदार को
अनजाने बन गए तुम सामने आकर

हाँ डूबने वाला था मै गहरे समंदर मझधार
कोशिश कर तैरता रहा तुम्हे पाने के लिए
पर साहिल पर आकर डुब गया

तूफानो मे जा घिरा मै भटकता विराने मे
संघर्षों ने बचा लिया दिलासा बाकी था
सपूर्दे खाक हुआ आकर बहारो में

Language: Hindi
1 Like · 83 Views
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