Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
23 Jun 2023 · 2 min read

नदिया के पार (सिनेमा) / MUSAFIR BAITHA

याद आ रहा है, जब सीतामढ़ी के बासुश्री टॉकीज में यह फ़िल्म लगी थी तो फ़िल्म के 25 वें सप्ताह के अंतिम दिन सिनेमाहॉल मालिक की तरफ से दर्शकों को एक मिठाई का डब्बा और रूमाल भी इस विशेष अवसर पर भेंट किया गया था।

1983 का कोई वक़्त था। तब नौवीं या दसवीं का छात्र था, छेहा गंवई था। देहाती किस्सों, किस्सों में पलने वाले किशोरवय से लगे जज्बात की एक समझ विकसित हो चुकी थी, उसमें जबरदस्त चाव जग चुका था।

तब अभिभावक से छुपकर ही सिनेमा देखता था। यह सिनेमा देखने किसी स्कूल साथी के साथ देखा था, सम्भवतः छुट्टी के दिन। और, देखने गया था हॉस्टल से ही। स्कूल (केंद्रीय विद्यालय, जवाहरनगर) के हॉस्टल में रहता था। स्कूल से सीतामढ़ी शहर की दूरी कोई 20 किलोमीटर थी। बस से जाने में यह दूरी एक घण्टे से ज्यादा में तय हो पाती थी, क्योंकि सड़क काफी खराब थी, गड्ढों वाली थी।

याददाश्त काफी खराब है।याद नहीं कि किन साथियों के साथ गया था। मगर यह याद है कि किसी साथी ने टिकट खिड़की पर किसी साथी के कंधा का सहारा लेकर टिकट कटाए थे।

गुंजा ने किरदार ने गहरे सम्मोहित कर लिया था! स्कूल के मेरे एक कक्षासाथी कमलेश झा पर तो गुंजा का नशा इतना सवार था कि वह क्लास की एवं स्कूल की लड़कियों में से कुछ को उनके पीठ पीछे गुंजा नाम से ही कई महीनों तक उपमित करता रहा, वह तो कुछ चिकने चेहरे वाले लड़कों को ही गुंजा कह कर चिढ़ाता था।

स्वाभाविक ही हर किशोर की जानिब अपनी भी चंदन की जगह होने की चाहत थी! फैंटेसी से इतर कहीं एक युवा दिल से नेह लगा भी बैठा था।

यह मूवी थियेटर और टीवी मिलाकर तकरीबन दस बार देख गया होऊंगा।
दूसरों को दिखाने के क्रम में भी कभी देख गया हूँ।

मेरे गाँव के एक चचा कहते हैं, वे लुधियाना ‘कमाने’ गए थे। वहीं थे तो शहर के किसी सिनेमाघर में यह फ़िल्म लगी थी। एक दिन बिहार के कुछ साथी प्रवासी मजदूरों के साथ फ़िल्म का कोई शो देख आए। देख क्या आए, नशा चढ़ गया। करीब 30 की उम्र थी उनकी। कह रहे थे, वे उस दिन से नदिया के पार का एक शो डेली देखने लगे जबतक की फ़िल्म पर्दे से हट न गयी। उनका कहना है कि कम से कम लगातार दो महीने तो हम वह फ़िल्म देखे ही होंगे।

Language: Hindi
1 Like · 295 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Dr MusafiR BaithA
View all
You may also like:
💐प्रेम कौतुक-561💐
💐प्रेम कौतुक-561💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
*** बिंदु और परिधि....!!! ***
*** बिंदु और परिधि....!!! ***
VEDANTA PATEL
मां (संस्मरण)
मां (संस्मरण)
Dr. Pradeep Kumar Sharma
" न जाने क्या है जीवन में "
Chunnu Lal Gupta
गहरा है रिश्ता
गहरा है रिश्ता
Surinder blackpen
■ वक़्त किसी को नहीं छोड़ता। चाहे कोई कितना बड़ा सूरमा हो।
■ वक़्त किसी को नहीं छोड़ता। चाहे कोई कितना बड़ा सूरमा हो।
*Author प्रणय प्रभात*
सुबह सुहानी आ रही, खूब खिलेंगे फूल।
सुबह सुहानी आ रही, खूब खिलेंगे फूल।
surenderpal vaidya
कोरोना तेरा शुक्रिया
कोरोना तेरा शुक्रिया
Sandeep Pande
रमेशराज की तीन ग़ज़लें
रमेशराज की तीन ग़ज़लें
कवि रमेशराज
जीवन
जीवन
Neeraj Agarwal
दलित समुदाय।
दलित समुदाय।
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
प्रेस कांफ्रेंस
प्रेस कांफ्रेंस
Harish Chandra Pande
पतग की परिणीति
पतग की परिणीति
Dr. Ramesh Kumar Nirmesh
"मार्केटिंग"
Dr. Kishan tandon kranti
प्रतिशोध
प्रतिशोध
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
निकट है आगमन बेला
निकट है आगमन बेला
डॉ.सीमा अग्रवाल
दोहा
दोहा
sushil sarna
होकर मजबूर हमको यार
होकर मजबूर हमको यार
gurudeenverma198
चलो संगीत की महफ़िल सजाएं
चलो संगीत की महफ़िल सजाएं
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
#डॉ अरुण कुमार शास्त्री
#डॉ अरुण कुमार शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
सफलता
सफलता
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
अल्प इस जीवन में
अल्प इस जीवन में
Dr fauzia Naseem shad
श्रम साधक को विश्राम नहीं
श्रम साधक को विश्राम नहीं
संजय कुमार संजू
"गमलों में पौधे लगाते हैं,पेड़ नहीं".…. पौधों को हमेशा अतिरि
पूर्वार्थ
प्रिये
प्रिये
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
🍁अंहकार🍁
🍁अंहकार🍁
Dr. Vaishali Verma
हौसले से जग जीतता रहा
हौसले से जग जीतता रहा
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
*भरोसा हो तो*
*भरोसा हो तो*
नेताम आर सी
*माटी कहे कुम्हार से*
*माटी कहे कुम्हार से*
Harminder Kaur
ग़ज़ल
ग़ज़ल
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
Loading...