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14 May 2024 · 2 min read

नज़रें!

पायल छनकाती चलती,
रुन झुन रुन झुन।
घर आँगन में दौड़ती,
बेख़ौफ़ निडर।
यहाँ से वहाँ भागती,
बिना डरे नाचती गाती,
बिन समहे सब कह जाती,
घर-आँगन में दौड़ती,
और छनकाती पायल की आवाज़,
रुन झुन रुन झुन।

थोड़ी बड़ी हुई,
पहली बार बाहर निकली,
बस स्टॉप पे देख
सबकी नज़रें,
थोड़ा सहम गई,
किए ठीक कपड़े,
सर ली झुका,
पर अनगिनत अपरिचित नज़रें,
जैसे उसे ही घूड़ती,
चारों तरफ से भेड़ियों जैसे,
नोंच डालने को आतुर,
भूखी निडर ख़ूँख़ार,
ऐसी नज़रें देखा उसने पहली बार।

और बड़ी हुई कॉलेज गई,
अपने दम पे किया था,
कठिन परीक्षा पार।
सोचा था अब होगा मुझ में,
वो पहले सा आत्म विश्वास।
फिर गूंजेगी पायल,
बेख़ौफ़ आज़ाद,
रुन झुन रुन झुन।

उसे कहाँ पता थी,
पढ़ाई से ज़्यादा ख़ूबसूरती की
चारों ओर चर्चा थी।
अब भी अनगिनत नज़रें,
ऐसे ही घूरते थे,
चारों तरफ़ से खदेड़ते,
पीठ पीछे बुलाते थे,
उसे ‘बोटी’ और ‘माल’।
सब सहने को हुई,
वो बेचारी लाचार,
सोचा पढ़ कर डिग्री ले लूँ,
फिर होगा मेरा संसार।

उसी बीच हुआ कांड ‘निर्भया’,
माता पिता की बढ़ी चिंता,
कॉलेज से उसे बुलवा लिया,
बोला आस-पास ,
करवा लो दाख़िला,
दूर जाना सुरक्षित नहीं है,
जीवन की कोई गैरंटी नहीं है।
विस्मित सोचती रही,
इसमें मेरी क्या गलती थी,
मैंने किया क्या ऐसा,
जिस से मुझे सजा मिली।

आक्रोश को निगल लिया,
घूँट समझ पी लिया,
दिलासा दिया यहाँ भी,
करूँगी अपने सपने साकार।

पढ़ाई कर, डिग्री लेकर,
चली जॉब करने वो।
माँ-बाप को सब कहने लगे,
बेटी का कमाया खाते हो,
तुम्हें धिक्कार हो।
तब भी वो ना समझी,
बेटी के कमाने में
क्या है गड़बड़ी?

ऊधर ऑफ़िस में भी,
उसे वैसी ही अनगिनत नज़रें मिली,
भूखी, आतुर, व्याकुल करती नज़रें,
जिन्हें अब वो अच्छे से
पहचान गई थी,
पर आज भी उन से बचना
नहीं सीख सकी थी,
आज भी उन नज़रों से
अशांत हो जाती थी,
मन बेचैन हो जाता था।

एक दिन सोचा लड़ूँ,
फोड़ दूँ उन नज़रों को,
जो ताकते है हर जगह।
एक, दो, दस, पंद्रह को फोड़ा भी,
पर कितनों को फोड़ती,
हर तरफ़ दिखी उसे,
नज़रें वैसी सी,
भूखी, लालची, ख़राब, बेकार।
हर जगह नोंचने को आतुर,
बेचारी कितनों से लड़ पाती,
हार थक घुटने तेक दिए,
छोड़ दी ये लड़ाई,
भूल गई थी पायाल की झंकार,
रुन झुन रुन झुन का राग।

किसी तरह डर सहम कर,
बीताया अपना जीवन,
मृत्यु शैय्या पर उसे सुनाई दिया बस,
रुन झुन रुन झुन करती
पायल की झंकार,
और दिखाई दिए नज़रें,
वहीं भूखी, लालची, ख़राब, बेकार।

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