नई रीत विदाई की
बाबुल इस घर के सभी मेरे अपनों का मुझसे तुम प्यार ना छीनो।
इस घर की दीपक मैं भी तो हूँ,मुझसे ये मेरा अधिकार ना छीनो।।
लड़की का रूप पाया मैंने तो,इसमें दुनिया वालों मेरी क्या गलती है।
बतलाओ अपने ही घर में क्यों,लड़की पराई बता बता कर पलती है।।
कितने नाज़ों नख़रों से हर घर में,लाडली देश के घर घर में पाली जाती है।
और फिर शादी के नाम पर लाडली,अपने ही घर से वो निकाली जाती है।।
बदलो बाबुल इस सोच को और समाज को मेरा नया संदेशा पहुँचाओ।
इस पुरानी प्रथा के बदले,मेरी शादी से नई प्रथा की शुरुआत कराओ।।
बाबुल के घर से कर शादी लड़की,अपने घर की तरफ़ पहला कदम बढ़ाती है।अपने पति के संग कर के शादी,तुम्हारी लाडली अपने घर की नींव रख पाती है।।
यह प्रथा लड़के और लड़की दोनों के बीच में विश्वास का दीप जलायेगी।
अपने घर से विदा होकर भी बाबुल तेरी लाडली तेरा घर अपना कह पाएगी।।
हर लड़कीं चाहती है कि वो भी अपने मात पिता की कामयाबी का कारण हो।
उसके द्वारा किये गये सभी काम भी उसके मात पिता के सम्मान का साधन हों।।
अब नहीं ज़रूरत होगी तुम्हें और भाई को सबके सामने हाथ जोड़कर आने की।
हिम्मत करनी होगी तुम्हें बाबुल मुझको सम्मान के साथ विदा कराने की।।
कहे विजय बिजनौरी नई प्रथा का एक एक शब्द लग रहा सच्चा है।
यदि हर बाबुल इसे अपना लेता है तो चलन इस प्रथा का अच्छा है।।
विजय कुमार अग्रवाल
विजय बिजनौरी।