नंगे पांव
अंजिली आखिर कितनी देर आंसुओं से तन मन भिगोती , रात कब तक अपनी परछाई से उसकी आंखो में घुलती। शायद मंदिर के घण्टे ने तीन बजाये थे, आंखे बोझिल हो कब सो गईं अंजिली को पता नहीं।
सवेरे पांव बिस्तर से नीचे रखे , चप्पल नहीं थीं, मुस्कुरा पड़ी वो, कुछ तो पीछे छोड़ना होगा कोई कंकड़ भी चुभेगा पर कब तक पलंग से नीचे नहीं उतरेगी। सोच झटक वो नंगे पांव ही चल पड़ी, अखिल के अहम को जैसे करार आ गया। आज अंजिली सिर्फ उसके लिये उठी है जैसा उसने चाहा नंगे पांव। अखिल ने उसके नुपूर को छनकाया और गुनगुनाता बाथरूम की ओर बढ़ गया।
सोच रही है अंजिली उसका मन अब सिर्फ़ शरीर है और आस क्या—-