धोखा
यह कहानी एक ऐसे दर्द को बयान करती है जिसे प्यार में धोखा और सिर्फ धोखा ही मिला। रिशतों के नाम पर सब बेवफा ही मिला। यह कहानी सबिता की है। छोटे से गांव में अपने मजदूर माँ-बाप के साथ रहती थी। नौ भाई बहन-भाई में वह सबसे बड़ी थी। माँ-बाप खेतों में मजदूरी करते और वह घर में रहकर चुल्हा – चौका करती थी। साथ ही साथ वह बहन-भाई का देख-रेख करती थी। साधारण सी दिखने वाली सबिता काम काज करने में काफी निपुण थी। उसके गुणों की चर्चा आस-पास के लोग करते थे। पढ़ने की इच्छा थी पर माँ- बाप ने उसे पढ़ाया नही था।एक दिन जब वह सुबह को घर में खाना बना रही थी। तभी उसके माँ- बाप घर पर आए।यह देख सबिता को आश्चर्य हुआ। क्योंकि अभी – अभी तो उसके माँ – बाप खेत पर काम करने गए ही थे ! फिर इतनी जल्दी क्यों आए। उसने झट आगे बढ़कर माँ से पुछा माँ इतनी जल्दी क्यों आ गई। माँ ने बोली बेटी तुम्हारे लिए जमींदार जी ने एक अच्छा काम दिलाया है।जिसमे हमें पैसे भी मिलेंगे और तुम्हें शहर में रहने को मिलेगा। अच्छा कपड़ा ,अच्छा खाना और गाड़ी में भी घुमने को मिलेगा। यह सुनकर सबिता रोने लगी बोली नही-नही माँ मुझे शहर को नही जाना है।मुझे तुम्हारे, बापु और भाई-बहन के साथ इसी गाँव में रहना है । यह सुन सबिता का बाप गुस्सा हो गया और बोला तुम्हें हर हाल मे शहर को जाना है। जमींदार जी ने हमें पहले ही पैसा दे दिया है। इतना बढिया काम दिलाया है और तुम इसके लिए मना कर रही है। चूपचाप अपना कपड़ा बाँध और मेरे साथ चल। जल्दी कर मै बाहर खड़ा हूँ बस निकल जाएगी। यह कहते हुए सबिता का बाप बाहर खड़ा हो गया। सबिता छोटी सी गठरी लेकर बाहर आई और रोते हुए अपने बाप के पीछे चलने लगी। माँ,भाई-बहन सब पीछे से देख रहे थे और सबिता धीरे-धीरे अपना कदम आगे को बढ़ा रही थी। इतने में उसके बापू ने आवाज लगाया चल जल्दी कर बस छुट जाएगी। बस आ गई उसमें से एक अधेड़ उम्र का आदमी उतरा। जिसके हाथ में सबिता के बाप ने सबिता का हाथ पकड़ा दिया और बोला लो अपनी अमानत को पकड़ों।वह आदमी सबिता को लेकर शहर वाले बस में चढ़ गया। सबिता शहर को पहुंची तो शहर को देख उसकी आँखें चकाचौंध हो गए। इतने देर में एक गाड़ी आई उसमें एक अधेड़ उम्र की महिला बैठी हुई थी जो काफी अच्छे घर से मालूम हो रही थी। उसने सबिता को अपने पास बुलाया।उस आदमी के इशारा करने पर सबिता उस औरत के पास चली गई। उस औरत के पैर छुए और उसके सामने खड़ी हो गई। सबिता ने सोचा शायद मुझे इसी औरत के यहाँ काम करना है। औरत ने सबिता को गाड़ी में बैठने को कहकर उस आदमी से बातचीत करने लगी। फिर कुछ रूपये के पुलिंदा उसे थमाया और फिर गाड़ी में बैठकर डाइवर से चलने को कहा। सबिता सहमी सी चुपचाप गाड़ी में बैठी हुई थी । कुछ देर बाद गाड़ी एक मकान के पास रुकी, वहाँ काफी चहल-पहल दिख रहा था। सबिता को गाड़ी से उतरने और साथ में चलने को कहकर वह औरत आगे आगे बढ़ने लगी। वहाँ पर सबिता ने देखा सब लोग उस औरत को माजी कहकर कर संबोधित कर रहे है और सब उसे सलाम कर रहे है। सबिता उस औरत के पीछे- पीछे उस मकान के अंदर चली गई। वहाँ सबिता ने देखा की उसके जैसी और भी लड़कियाँ है।जो की काफी अच्छे कपड़े पहन कर सजी-संवरी है। इतने में माजी ने एक औरत को सबिता को तैयार करने को कहकर वहाँ से चली गई।उस महिला का नाम तनु था ।अब तक सबिता काफी डर चुकी थी। वहाँ के हालात उसे अच्छे नहीं लग रहे थे। वह तनु नाम की महिला से घर वापस जाने की बात कही और घर जाने की जिद्द करने लगी। इस पर तनु नाम की महिला ने थोड़ा ऊंचे स्वर में बोली तु किसके पास जाएगी। उस माँ – बाप के पास जिसने तुम्हें पैसों के लिए बैच दिया है। यह सुनकर सबिता के होश उड़ गए। उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था। फिर भी वह घर जाने की जिद्द कर रही थी। वह भी इस बात पर विश्वास करने के लिए तैयार नही थी की उसके माँ-बाप ने उसे बेच दिया है।इतने में माजी आई और उसने सबिता की बात उसके बाप से करा दिया।उसके बाद सबिता कहती है की मैंने जो अपने बापू के मुँह से सुना ईश्वर न करे किसी बेटी को अपने बाप के मुँह से ऐसा सुनना पड़े।अब सबिता को एहसास हो गया था की वह फँस गई है।परंतु कितनी बड़ी दल-दल में वह फंसने जा रही थी उसका एहसास नही था ।उसे तो वेश्या और वेश्यालय का मतलब भी नही पता था।आज एक मासूम सी लड़की इस दल-दल में फँसने जा रही थी ।बार-बार अपनी आजादी और रहम की भीख मांग रही थी।मुझे जानें दो यह रट लगा रही थी । उसको कहाँ पता था वहाँ पर रहने वाले की आत्मा पहले ही मर चुकी है। जिन्दा है तो यहाँ पर तो सिर्फ पैसा। फिर भी वह रोए जा रही थी और बाहर जाने की जिद्द मचा रही थी। इतने में उस तनु नाम की महिला उसे जोर से तमाचा मारते हुए कहा अब ज्यादा नाटक न कर और चुपचाप इस कपड़े को पहन ले सबिता के पास अब दूसरा कोई विकल्प नही था। वह कपड़े पहनकर तैयार हो गई। वह अभी चौदह साल की हुई थी और शुरू हो गया जिन्दगी का दूसरा सफर जिसमे उसके लिए आँसु के अलवा कुछ भी नहीं था । लेकिन सबिता आज भी कहती हैं जो दर्द उसके माँ बाप ने दिया उस दर्द को वह कभी भुला न पाई क्योकि वह दर्द कितनें और दर्द को जन्म देने वाला था। उस दिन के बाद उसके जीवन में कभी खुशी ने दस्तक नही दिया | हर दिन तैयार होना और मर्दों के बीच परोसे जाना उसकी जिन्दगी की कहानी बन गई। कई बार वह भागने की कोशिश भी कि।पर हर बार नाकाम रही। इस तरह की जिन्दगी गुजारते हुए दो साल बीत गया था।एक दिन सबिता को
पता चला की वह माँ बनने वाली है। पता नहीं क्यो वह एक नए रिश्ते में बँधना चाहती थी जिसे माँ कहते हैं। वह नही जानती थी की इस बच्चे का पिता कौन है। फिर भी वह इस बच्चे को लाना चाहती थी। शायद अपने जीवन के खाली पन को भरना चाहती थी। पर सबिता को क्या मालूम की कोठे को चलानी वाली महिला जिसे माजी कहते है वह ऐसा होने नही देगी। सबिता ज्यादा कुछ सपना देख पाती इससे पहले माजी नाम की महिला आई और सबिता के मुँह में जबरदस्ती दवा खिलाते हुए कहा “मैंने तुम्हें बच्चे पैदा करने और रिश्ते बनाने के लिए नही रखा है, बल्कि पैसे कमाने के लिए रखा है। चुपचाप सिर्फ मर्दों को खुश करो और पैसा कमाओ। यह माँ बनने सपना छोड़ दो। सबिता कहती है इस तरह करके सोलह – सत्रह या ठीक से शायद मुझे याद भी नहीं है कि कितनी बार मै माँ बनी और कितनी बार मेरा गर्भपात कराया गया। आज सबिता खून की कमी के कारण और अन्य कारणों से वह जिंन्दगी के चंद साँसे अस्पताल में गिन रही थी। उसे अस्पताल किसने लाया था, उसे कुछ भी मालूम नही था।हालंकि वह इतना जरूर कहती है की एकबार उसे मोहन नाम के दलाल से प्यार हुआ था पर उसने भी उसे धोखा दे दिया था। वह कहती है जब अपना ही खुन धोखा दे दिया था तो वह दिया तो क्या दिया। पर वह यह उम्मीद जताई रही थी की शायद मोहन को मुझ पर तरस आ गया होगा ।इसलिए उसने मुझे अस्पताल के दरवाजे पर छोड़ गया होगा। ऐसा वह सोच रही थी।पर उसे ठीक-ठीक मालूम नही था की उसे किसने लाया था।पर उसने एक मीठी सी मुस्कान चेहरे पर लाते हुए बोली देखो मेरी किस्मत। इतने दिनों से आजादी चाहती रही और आज आजादी मिली भी तो ऊपर जा रही हूँ।बस मन में एक दर्द रह गया, मै भी माँ बनना चाहती थी।इतना कहते ही उसने दम तोड़ दिया।शायद इतना कहने के लिए ही उसने अपने प्राण को रोक रखा था।आज उसके चेहरे पर सकुन दिख रहा था। आँखो में दर्द और प्रश्न दिख रहा था। दर्द था अपने अजन्मे बच्चे के लिए। सपना आँखो मे दम तोड़ रहा था माँ बनने का।प्रश्न था माँ-बाप और समाज से जिसने इतना दर्द दिया की वह महज बाईस साल की उम्र में कष्ट सहते हुए अपना दम तोड़ दिया।
~अनामिका