धूल
है अंधेरा हर राह पर
फूलों में भी शूल है,
हो गया है आज भारत
जैसे बिखरी धूल है।
भुखमरी और है लाचारी
बहनों पे है विपदा भारी
नेता जिसको जन ने बनाया
जन को ही फिर उसने भुलाया।
नफरतों का दौर है अब
प्रेम की ना बून्द है
हो गया है आज भारत
जैसे बिखरी धूल है।
कभी जात पर, कभी धर्म पर
इंसा-इंसा लड़ते है
है अपराधी मौज मनाते
निर्दोष जेल में सड़ते है।
भाई-भाई लड़ रहे है
बदली ये तस्वीर है
हो गया है आज भारत
जैसे बिखरी धूल है।
मेरा तेरा कर रहे है
खुद ही खुद को छल रहे है
दूजे पर आरोप लगाते
निज की गलती भूल रहे है।
तुम ही रक्षक, बन ना भक्षक
क्यों मैला तेरा खून है,
हो गया है आज भारत
जैसे बिखरी धूल है।
नंद लाल सुथार, जैसलमेर