धूप का कहर
धूप का कहर
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पेड़ों के झुरमुट से सूरज झांकता,
हर मानव सुनहरी किरणों को ताकता।
भोर का सुहाना गुलाबी मौसम है,
धूप की तपिश से ,हर कोई परेशान हैं।
तपाने लगी वसुंधरा को,
सूरज की किरणें सबेरे से।
धूप में हर कोई ,जल रहा अंगारे से।।
धूप की गर्मी से सब बेहाल हो जाते,
कहीं राहत नहीं मिलती,
मिले पेड़ों तले जाते ।
पेड़ पौधे भी धूप की तपिश से
है मुरझाते ।
सांझ होने पर ही वे,
चैन की सांस ले पाते ।।
धधक रही है धूप यूं अंगारे बनकर।
मानव सभी तप रहे,
हैं यूं ज्वाला बनकर ।।
धूप की रोशनी से आंखें,
चकाचौंध हो जाती ।
बाहर निकलो घर से तो,
आंखें धूप सह नहीं पाती।।
सुषमा सिंह*उर्मि,,