****धीर धरो, मत व्याकुल हो****
लक्ष्य प्राप्ति की आशा में,
जीवन संघर्ष की परिभाषा में,
हिम सी शीतलता अपनाकर,
ज्ञान का तेजस्वी दीप जलाकर,
भ्रमित न हो, नहीं कायर हो,
धीर धरो, मत व्याकुल हो॥1॥
विपति काल की क्षणिका में,
कठोर कर्म की सरिता में,
साहस का नव भाव बनाकर,
बुद्धि का नव तरु लगाकर,
भ्रमित न हो, नहीं कायर हो,
धीर धरो, मत व्याकुल हो॥2॥
अर्थ साम्य की चर्चा में,
व्यर्थ जनित जग खर्चा में,
नियोजन का तन्त्र बनाकर,
सादा सा व्यवहार अपनाकर,
भ्रमित न हो, नहीं कायर हो,
धीर धरो, मत व्याकुल हो॥3॥
कुसंग जटिल से प्रस्तर में,
घृणा प्रेम के अन्तर में,
अपने को ही मित्र बनाकर,
ईश कृपा का कवच बनाकर,
भ्रमित न हो, नहीं कायर हो,
धीर धरो, मत व्याकुल हो॥4॥