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30 Nov 2022 · 1 min read

धरा की पुकार

धरा की पुकार
——————–
अब! पेड़ों पर कहां, चिड़िया नजर आती हैं,
और न ही उनके कलरव ,की आवाजें
सुनाई देती हैं।।

मानुष तूने कैसा ये निर्मम काम किया।
अपना घर बनाने को, जंगल ही काट दिया।।

धरा! कभी ये पेड़ों से लदी हुई थी।
पहाड़ ढके बर्फो से, नदियां कल-कल
बहती थी।।

वायु भी शुद्ध होती,और जल भी
निर्मल शीतल।
लहलहाती फसलें होती,और नदियों
से मिलता जल ।।

अब तो! धरती मां भी चीख उठी,
बहुत हुआ विनाश।
फिर भी! मानुष समझा नहीं,
बंधा हुआ मोहपाश।।

हे मानुष! तुम आज सम्भल जाओ,
नहीं तो पछताओगे।
वायु भी शुद्ध नहीं मिलेगी,
और न ही जल को पाओगे।।

बस! बहुत हुआ मानव,अब तू कुछ
ना कर ।
पेड़ों को तुम न काटो, धरती मां पर,
रहम कर ।।

सुषमा सिंह*उर्मि,,
कानपुर

Language: Hindi
1 Like · 2 Comments · 80 Views
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