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7 Oct 2019 · 1 min read

‘धरती पुत्र किसान’

न धूप कभी विचलित करती,

न छाँह कभी आलस भरती।

संतोष सदा गहना जिसका,

वह देशरत्न कोई और नहीं।

वह धरती-पुत्र किसान है।

चाहे अतुलित बरसातें हों,

सूखे का प्रचण्ड प्रहार रहे।

फसल मिटे या घर मिट जाए।

विश्वास ही छत रहता जिसका,

वह धरती-पुत्र किसान है ।

चिड़िया की चहकन से पहले,

सूरज की दहकन से पहले।

गोधूलि की शुभ बेला में,

मंदिर-मंदिर घण्टे बजते हों।

या फिर मस्ज़िद अज़ान हो,

हृदय-ईष्ट बसता जिसका,

वह धरती पुत्र किसान है।

रूखी-सूखी स्वयं खाकर,

देता अन्न सदा हमें कमाकर।

चूल्हा स्वयं का जले-न-जले,

सबका चूल्हा ‘मयंक’ जलाना।

परोपकारी भावों से सज्जित,

ध्येय अमिट रहता जिसका,

वह धरती पुत्र किसान है ।

Language: Hindi
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