धरती कहे पुकार के .
धरती कहे पुकार के ,
आसमां की ओर निहार के ।
वो जो है सखी अपनी ,
कब आयेगी बरखा रानी ।
तेरे बिन सुना आंगन मेरा ,
और बेरंग सा है आंचल मेरा ।
मेरे निर्जीव से तन मन में ,
प्राण फूंक दे सकल जीवन में ।
तेरी शीतल फुहार हे सखि !
खिलादे पादप,वृक्ष की हर पाखी ।
तेरीअभिलाषी मेरी प्रत्येक संतान ,
पशु-पक्षी,सरीसृप,समस्त जड़ चेतन ।
उमड़ – घुमड़ कर जब मेघा गरजे ,
चमक चमक के दामिनी भी गरजे ।
मस्त पवन फिर लहराने लगे ,
तुझसे मिलन की आस जगने लगे ।
मगर जब कभी तू फिर भी न बरसे ,
हाय ! जिया हमारा कितना तरसे ।
मेरी संतानों के नयनों से दिन रात ,
अश्रुयों की बूंदों से भीगे रहे गात ।
मुझसे उनका दुख देखा नहीं जाता,
और ये वियोग भी सहा नहीं जाता।
अब बरस भी जा और प्रतीक्षा मत करवा,
ओ मेरी हमजोली, मेरी जान ,मेरी मितवा ।