धरती करे पुकार
धरती करे पुकार!
लहराता आंचल हरियाला
पात-पात पर गीत की माला।
चलें झूमती सदा हवाएं
गाय चराता दीखे ग्वाला।।
सुखमय सुरभित मोहक पावन
मंगलमय वन नित मनभावन।
कल-कल बहती जीवन सरिता
हर मन सावन, पग-पग सावन।।
लालच की बलि चढ़ी चमेली
छिटकी तड़क-तड़फती सहेली।
कटते बरगद-नीम-आम नित
सकल वन अनसुलझी पहेली।।
जिसने जीवन दिया जगत को
सुखमय- मधुमय रखा विगत को।
वो बगिया वीरान हो गई
मिलने हैं कांटे आगत को।।
नहीं हवा है सुरभित- सुरभित
नहीं बहारें मुकुलित-कुसुमित
नहीं छांव है नहीं बसेरा
व्याकुल जीव धूप से मूर्छित।।
तपती धरती करती पुकार
बरसो बादल! मूसलाधार।
अब जीव-जगत अकुलाया है
“मौज” है जल जीवन-आधार।।
विमला महरिया “मौज”