धन की देवी
देख दृश्य संसार का,
कुछ नया व्यापार का,
एक भिखारी खटखटाया,
दरवाजा मंदिर के द्वार का।
बहुत दिनों से सोचता था,
पर आज कहने आया हूँ,
माँ मेरा कुछ शिकायत है,
जो आज सुनाने आया हूँ।
अक्सर सुना है इन्सानों की,
दोरंगी नजर होती है,
तेरी नजरों की कोई रंग नहीं,
फिर भी कई रंग तू बिखेरती है।
दौलतवाले को दौलत पर दौलत,
भिखारी को ढंग से भीख नहीं,
ये कैसी तेरी लीला है माँ,
जहाँ मिलता किसी को सीख नहीं।
भ्रष्ट को तेरा साथ है मिलता,
भ्रष्टता ही तेरी पूजा है,
ईमानदारी से रूठ गई है तू,
सच्चाई को ऐसा लगता है।
तुम धन की देवी हो,
धन से ही खुश होती हो,
अनादर तेरी करता है जो,
उसी पर मोहित होती हो।
लगता है व्यापारी हो तुम,
व्यापार ही तुमको भाता है,
जो धन से पूजा करे तेरी,
उसी पर धन बरसाती हो।
फिर हम जैसो को क्या,
जिसको तन-मन है पर धन नहीं,
लगता है नर्क ही अपना धन है,
और दौलत से कोई संबंध नहीं।
धनवानों को धनवान बनाना,
गरीबों को भिखारी,
यहीं आशिर्वाद है तेरी,
मान ली है दुनिया सारी।
कुंदन सिंह बिहारी(मा०शिक्षक)
उत्क्रमित माध्यमिक वि०अकाशी
सासाराम, रोहतास