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15 May 2024 · 1 min read

धन्यवाद की महिमा

धन्यवाद की महिमा न्यारी
अलादीन का यह चिराग है
जो तन-मन को शीतल कर दे
यह ऐसी दैवीय आग है

धन्यवाद देने वाले का
नहीं पास से कुछ जाता है
दुनिया का वैभव उसके ढिग
अविरल खिंचा चला आता है

दुश्मन को दे धन्यवाद हम
उसका हृदय जीत सकते हैं
मित्रों को दे धन्यवाद हम
पल-प्रतिपल आगे बढ़ते हैं

धन्यवाद देकर अपने को
रह सकते हम सदा निरोगी
हरदम जग-हितार्थ जन-जन को
धन्यवाद देते हैं योगी

वसुधा को वश में करने हित
धन्यवाद दें जड़-चेतन को
धन्यवाद दें बाह्य जगत को
धन्यवाद दें अन्तर्मन को

धन्यवाद जादू की पुडि़या
भलीभांति मैं जान गया हूं
जना रहा हूं सारे जग को
जादूगर मैं नया नया हूं

अब तो मेरे तन में, मन में
धन्यवाद रहता है छाया
धन्यवाद देता मैं प्रभु को
गो गोचर है जिनकी माया

अब मुझको कणकण तृणतृण में
परमेश्वर देता दिखलाई
धन्यवाद के सिवा उसे क्या
दे सकता मैं, मेरे भाई

मेरा धन्यवाद स्वीकारो
रहो सदैव विहंसते गाते
धन्यवाद मय जीवन जीकर
रहो सदा आनन्द लुटाते ।

महेश चन्द्र त्रिपाठी

Language: Hindi
1 Like · 116 Views
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