Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
7 Mar 2024 · 3 min read

ध्रुवदास जी के कुंडलिया छंद

भजन कुंडलिया
हंस सुता तट बिहरिबौ, करि वृंदाबन बास।
कुंज-केलि मृदु मधुर रस, प्रेम विलास उपास।।
प्रेम-विलास उपास, रहे इक-रस मन माही।
तिहि सुख को सुख कहा कहौं, मेरी मति नाहीं ।।
‘हित ध्रुव’ यह रस अति सरस, रसिकनि कियौ प्रसंस।
मुकतनि छाँड़े चुगत नहिं, मान-सरोवर हंस ।।१

नवल रँगीले लाल दोउ, करत विलास-अनंग।
चितवनि-मुसकनि-छुवनि कच, परसनि उरज-उतंग ।।
परसनि उरज उतंग, चाह रुचि अति ही बाढ़ी।
भई फूल अंग-अंग, भुजनि की कसकनि गाढ़ी।।
यह सुख देखत सखिनु के, रहे फूलि लोइन कमल।
‘हित ध्रुव’ कोक कलानि में, अति प्रवीन नागर नवल ।।३

मदन केलि को खेल है, सकल सुखन कौ सार।
तेहि विहार रस मगन रहें, और न कछू सँभार ।।
और न कछु सँभार, हारि करि प्रान पियारी।
राखति उर पर लाल, नेकहूँ करति न न्यारी ।।
याही रस कौ भजन तौ, नित्य रहौ ‘ध्रुव’ हिय-सदन ।
कुंज-कुंज सुख-पुंज में,करत केलि लीला-मदन ।।५

प्रेमहि शील सुभाव नित, सहजहि कौमल बैन ।
ऐसी तिय पिय-हीय में, बसति रहौ दिन-रैन ।।
बसति रहौ दिन रैन, नैन सुख पावत अति ही।
प्रिया प्रेम-रस भरी, लाल तन चितवति जब ही।।
देखौ यह रस अति सरस, बिसरावत सब नेम ही।
“हित ध्रुव’ रस की रासि दोउ, दिन बिलसत रहें प्रेम ही।।७

सीस-फूल झलकान छबि, चंद्रिका की फहरानि।
‘ध्रुव’ के हिय में बसत रहौ, बिबि चितवनि मुसकानि ।।
बिबि चितवनि मुसकानि, रहौ यौं उर में छाई।
तिहिं रस केवल मनहिं, और कछुवै न सुहाई।।
या शोभा पर वारियै, कोटि-कोटि रति-ईस ।
रीझि-रीझि नख-चंद्रकनि, जब लावत पिय सीस ।।९

ऐसें हिय में बसत रहौ, नव-किसोर रस-रासि ।
चितवनि अति अनुराग की, करत मंद मृदु हाँसि ।।
करत मंद मृदु हाँसि दोउ, होत जु प्रेम प्रकास ।
छके रहत मदमत्त गति, आनंद मदन विलास ।।
‘हित ध्रुव’ छबि सौं कुंज में, दै अंसनि-भुज वैसे।
मेरी मति इति नाहिं, कहौं उपमा दै ऐसे ।।११

राधावल्लभ लाल की, बिमल धुजा फहरंत।
भगवत धर्महुँ जीति कैं, निजु प्रेमा ठहरंत ।।
निजु प्रेमा ठहरंत, नेम कछु परसत नाहीं ।
अलक लड़े दोउ लाल, मुदित हँसि-हँसि लपटाहीं ।।
‘हित ध्रुव’ यह रस मधुर है, सार को सार अगाधा।
आवै तबहीं हीय में, कृपा करें वल्लभ राधा ।।१३

श्रीराधा वल्लभ-लाड़िली, अति उदार सुकुमारि ।
“ध्रुव” तौ भूल्यौ ओर ते, तुम जिनि देहु बिसारि।।
तुम जिनि देहु बिसारि, ठौर मोकों कहुँ नाहीं।
पिय रँग-भरी कटाक्ष, नेकु चितवौ मो माहीं ।।
बढ़े प्रीति की रीति, बीच कछु होइ न बाधा।
तुम हौ परम प्रवीन, प्रान-वल्लभ न श्रीराधा ।।१५

वृंदाविपिन निमित्त गहि, तिथि बिधि मानें आन।
भजन तहाँ कैसे रहै, खोयौ अपनै पान।।
खोयौ अपनै पान, मूढ़ कछु समुझत नाहीं।
चंद्रमनिहिं लै गुहै, काँच के मनियनि माहीं ।।
जमुना-पुलिन निकुंज-घन, अद्भुत है सुख को सदन।
खेलत लाड़िली-लाल जहँ, ऐसौ है वृंदाविपिन । ।१७

बार-बार तो बनत नहिं, यह संजोग अनूप।
मानुष तन, वृंदाविपिन, रसिकनि-सँग, बिबिरूप ।।
रसिकनि-सँग बिबिरूप, भजन सर्वोपरि आही।
मन दै “ध्रुव” यह रंग, लेहु पल-पल अवगाही ।।
जो छिनु जात सो फिरत नहिं, करहु उपाइ अपार।
सकल सयानप छाँड़ि भजु, दुर्लभ है यह बार।।१९

भजनसत
बहुत गई थोरी रही, सोऊ बीती जाइ ।
‘हित ध्रुव’ बेगि बिचारि कै, बसि वृंदावन आइ।
बसि वृंदावन आइ, लाज तजि के अभिमानै ।
प्रेम लीन है दीन, आपकों तृन सम जानै।
सकल भजन कौ सार, सार तू करि रस-रीती।
रे मन देखि बिचारि, रही कछु इक बहु बीती ।।१०२

प्रेमावली लीला
पिय-नैंननिं को मोद सखी, प्रिया-नैंन को मोद।
रहत मत्त विलसत दोऊ, सहजहि प्रेम-विनोद ।।
सहजहि प्रेम-विनोद, रूप देखत दोउ प्यारे।
लोइनि मानत जीति, दुहुँनिं जद्यपि मन हारे ।।
परे नवल नव केलि, सरस हुलसत हिय सैंननि।
छिन-छिन प्रति रुचि होइ,अधिक सुंदर पिय-नैंननि ।। १२१

1 Like · 44 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
कि दे दो हमें मोदी जी
कि दे दो हमें मोदी जी
Jatashankar Prajapati
चार यार
चार यार
Bodhisatva kastooriya
सकारात्मकता
सकारात्मकता
Sangeeta Beniwal
नहीं देखा....🖤
नहीं देखा....🖤
Srishty Bansal
तेरे इंतज़ार में
तेरे इंतज़ार में
Surinder blackpen
कब तक
कब तक
आर एस आघात
इज़हार कर ले एक बार
इज़हार कर ले एक बार
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
खुद के करीब
खुद के करीब
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
खरीद लो दुनिया के सारे ऐशो आराम
खरीद लो दुनिया के सारे ऐशो आराम
Ranjeet kumar patre
जी करता है , बाबा बन जाऊं – व्यंग्य
जी करता है , बाबा बन जाऊं – व्यंग्य
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
Dr Arun Kumar shastri
Dr Arun Kumar shastri
DR ARUN KUMAR SHASTRI
💐प्रेम कौतुक-312💐
💐प्रेम कौतुक-312💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
#ग़ज़ल
#ग़ज़ल
*Author प्रणय प्रभात*
मौहब्बत में किसी के गुलाब का इंतजार मत करना।
मौहब्बत में किसी के गुलाब का इंतजार मत करना।
Phool gufran
"अजब-गजब मोहब्बतें"
Dr. Kishan tandon kranti
बहुत हुआ
बहुत हुआ
Mahender Singh
विरह
विरह
नवीन जोशी 'नवल'
12- अब घर आ जा लल्ला
12- अब घर आ जा लल्ला
Ajay Kumar Vimal
गाडगे पुण्यतिथि
गाडगे पुण्यतिथि
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
भारत की पुकार
भारत की पुकार
पंकज प्रियम
जाने कहाँ से उड़ती-उड़ती चिड़िया आ बैठी
जाने कहाँ से उड़ती-उड़ती चिड़िया आ बैठी
Shweta Soni
पाती
पाती
डॉक्टर रागिनी
*ट्रस्टीशिप विचार: 1982 में प्रकाशित मेरी पुस्तक*
*ट्रस्टीशिप विचार: 1982 में प्रकाशित मेरी पुस्तक*
Ravi Prakash
सुविचार
सुविचार
विनोद कृष्ण सक्सेना, पटवारी
3205.*पूर्णिका*
3205.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
जो बीत गया उसे जाने दो
जो बीत गया उसे जाने दो
अनूप अम्बर
हर परिवार है तंग
हर परिवार है तंग
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
छन्द- सम वर्णिक छन्द
छन्द- सम वर्णिक छन्द " कीर्ति "
rekha mohan
तबकी  बात  और है,
तबकी बात और है,
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
★उसकी यादों का साया★
★उसकी यादों का साया★
★ IPS KAMAL THAKUR ★
Loading...