दो लोगों की सोच
दो लोगों का तजुर्बा,
एक जैसा नहीं होता
अलग है ख्याल,
अलग ही है सोच।
एक देखता है ऊपर,
तो दूसरा नीचे,
फिर कैसे देखेंगे दोनों
एक ही दृश्य।
एक कहता है सच,
तो दूसरा झूठ,
फिर कैसे साथ रहेंगे,
ये दो परस्पर विरोधी।
एक सोचता है अच्छा,
तो दूसरा बुरा,
फिर कैसे मिलेगी सोच
ये तो है मुश्किल।
एक बांटता है प्रेम,
तो दूसरा नफरत,
फिर कैसे रहेंगे साथ,
ये तो है मुश्किल।
एक चाहता है मिलना
तो दूसरा दूरी,
फिर कैसे मिल सकते हैं,
ये दो विपरीत भाव।
पर फिर भी,
दिल गर एक हो तो,
दूरियां मिट सकती हैं।
समझौता करना सीखें,
आदर करें एक-दूसरे का,
तभी दो लोगों की सोच,
एक सी हो सकती है।
– सुमन मीना (अदिति)