दो भावनाओं में साथ
प्रश्न
फुरसत मिली तो पूछ रहा हूँ
क्या- क्या दूं तुमको उपहार ?
सखी मांग लो चाहे हीरा !
या रत्न जटित नौ – लखा हार !
उत्तर
दे दो सबल भुजाओं का हार,
चाहिए प्रेम- लालिमा का श्रृंगार,
कर दो मेरा प्रेम पुनः साकार ,
तारीफ भी करते रहो बारंबार!
कभी मान लो बात तुम मेरी,
तो कभी करें पर्वत पर सैर ,
मेरा भी परिवार तुम्हारा-
मत मानो तुम उनको गैर !
कभी क्षमा दो ,कभी हंसा दो
कभी बालकों से भरो संसार !
कभी कंटकों पर अविरल साथ
कभी बढ़ा दो मदद का हाथ !
निरंतर कर लो तुम सम्मान ,
फिर मांग लो चाहे मेरी जान !
स्त्री हूं और अर्धांगिनी भी – सनम
ना तुमसे उम्दा, न ही कम !
चलूंगी साथ मैं हर कदम !