दो पल देख लूं जी भर
उजाड़ दे उलझन तू मेरा घर इस कदर,
देख भी ना सकूं फिर से कोई मंजर ।
मुझे तू कर परेशां ये तेरा हक हो सकता,
मना भी तो नहीं कर सकता तेरा सिकंदर ।
काश मैं तेरी यादों का सिलसिला बन पाता,
लेकिन निगाहों में तेरी नहीं ये मुझको मयस्सर ।
शिकबा नहीं कोई तेरा इस कदर बदल जाना,
जिंदगी के सफ़र में खलता रहेगा ये उम्र भर ।
है मुझे मालूम अंत तेरा भी और मेरा भी है,
आखिरी उम्मीद है तुझे दो पल देख लूं जी भर ।