दो दिलो को जुदा कर गई,कॉम की ये कई बंदिशे
तेरी यादों में खोये हुये,शाम से फिर सुबह हो गई
मुझको छत पर ही बैठे हुये आज फिर रात भर हो गई
लोग आते रहे रात भर,और मिलते रहे रात भर
मुझको रोते हुये सथिया ,एक फिर से सुबह हो गई
हम तो तारो में खोये रहे न पता कब सुबह हो गई
हम न सोये न जागे रहे ,रोते रोते सुबह हो गई
तेरी गलियों में फिरते हुये बिन मिले शाम फिर हो गई
कोम की ये कई बंदिशे,दो दिलो को जुदा कर गई
मैं भी पागल इधर हो गया वो भी पागल उधर हो गई
बिन फले ही मेरे सथिया,डाल दिल की ये मुरझा गई
चाँद तारे फलक और जहाँ,सब के सब ये खत्म हो गये
कोम की ये कई बंदिशे,दो दिलो को जुदा कर गई
ये जुदाई की पीड़ा उसे ,मौत के पास ही ले गई
चंद रोजो के ही वक्त में,उसकी साँसे भी नम हो गई
वो तड़प ने लगी मेरी जा,और फिर थी वो रुक सी गई
सारी दुनिया मेरी छोड़कर,दूजी दुनित बसाने लगी
कोम की ये कई बंदिशे,दो दिलो को जुदा कर गई
और अगली सहर साथियों,उसकी अर्थी थी सजने लगी
चंद लम्हे के ही बाद तो,उसकी अर्थी गुजरने लगी
जब वो मिट्टी में ढकने लगी,सारी खुशियाँ मेरी ले चली
दर्द मुझको जुदाई का था,और भी दर्द वो दे चली
कोम की ये कई बंदिशे,दो दिलो को जुदा कर गई
मैं तो बुझता चला रहा,वो मुझे फिर हवा दे गई
मेरी सासे थी गिरने लगी,तो मुझे वो दवा दे गई
चाँद तारों की बातें बता,मुझे जीने की वजह दे गई
गिर रहा था ऋषभ राह में,वो सहारा मुझे दे गई
कोम की ये कई बंदिशे ,दो दिलो को जुदा कर गई
प्रेम के वो वशीभूत हो,एक खत छोड़कर वो गई
मुझको जीने की वो सथिया,उम्र भर की सजा दे गई
चोट खाया था ये दिल मेरा,उसपे नमक मिर्च को डाल गई
दर्द से में बिलखता रहा,वो मुझे छोड़कर के गई
कोम की ये कई बंदिशे दो दिलो को जुदा कर गई
अब न सोता हूँ मैं रात भर,और न जागू मैं सारा दिन
दर्द मुझ पर है छाया हुआ,जैसे छाई है जग में पवन
रात भर जाग कर सथिया,लिखता रहता हूँ तुम पर गजल
मैं पुकारू उसे साथियों,गीत में और सारी गजल
दो दिलो को जुदा कर गई कोम की ये के बंदिशें
आदरणीय अंजुम साहिब की तर्ज पर