दोहे
पनघट पर गिरधर खड़े,ले राधे की आस।
रुनझुन धुन पायल करे,सफल हुआ विश्वास।।
[: पवनपुत्र सुत केसरी, मातु अन्जनी लाल।
रामभक्त हनुमान जी, सन्तों के प्रतिपाल।।
: धारा बहती प्रेम की,मज्जन करते भक्त।
कृपा बरसती स्नेह की,हो जाते आशक्त।।
दाता के दरबार में,सब हैं एक समान।
सबके ही अन्तस् बसे,बस इक ही भगवान।।
खुला सभी के सामने, दाता का दरबार।
मुक्तहस्त से दे रहे,ईश्वर सबको प्यार।।
डा.मीना कौशल
प्रियदर्शिनी