दोहे -लालची
हिन्दी दोहा विषय- लालची
राना देखा लालची , बस पैसौ का मीत |
दौलत पाकर मानता , है अब मेरी जीत ||
देख लालची द्रब्य को , लालच के भर नैन |
हथियाकर ही मानता , राना तब ही चैन ||
बुरी बला लालच कहा , राना सुनता कौन |
करे अनसुनी लालची , जानबूझकर मौन ||
रोता है तब लालची , जब घाटे का काम |
नहीं एक के दो बने , राना टूटें दाम ||
राम चरण के लालची , राना दें मुस्कान |
करते रहते है भजन , और ईश गुणगान ||
राना तुम हो लालची , पत्नी रखे विचार |
कितना भी तुम लिख चलो, भरे नहीं भंडार ||
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दोहाकार ✍️ राजीव नामदेव “राना लिधौरी”
संपादक “आकांक्षा” पत्रिका
संपादक- ‘अनुश्रुति’ त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
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