दोहे “रही न हाथ लगाम”
विषय-रही न हाथ लगाम।
काया से लाचार हो, पिता रहा नाकाम।
सत्ता सोंपी पुत्र को, रही न हाथ लगाम।।
भाई-भाई कर रहे, रिश्तों को बदनाम।
खून-खराबा हो गया, रही न हाथ लगाम।।
अच्छे दिन की सोचकर, बिगड़े सारे काम।
महँगाई सिर पर चढ़ी, रही न हाथ लगाम।।
मृदु वाणी की आड़ में, जख़्मी किए तमाम।
जब छलनी उर निज हुआ, रही न हाथ लगाम।।
भौतिकता चश्मा चढ़ा, भूला प्रभु का नाम।
अंत समय तन भोगता, रही न हाथ लगाम।।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
वाराणसी (उ. प्र.)