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21 Nov 2019 · 1 min read

दोहा ग़ज़ल

मुझसे है लिपटे हुये,यूँ यादों का तार
तेरे जैसा हो गया, है मेरा किरदार

कहने का अब अलविदा, समय आ गया यार
बस आकर मेरे गले, लग जा तू इक बार

चेहरे पर रहती लिखी,रोज नई ही बात
तू तो अब लगने लगा ,रोज नया अखबार

बाहर से खामोश हो, अंदर से वाचाल
अब तो आकर तोड़ दे, खड़ी हुई दीवार

अगर बीच मझदार में, फँसी है तेरी नाव
करले अपने हौसलों, को अपनी पतवार

लगता है ये ‘अर्चना’,रूठ गया है भाग्य
कोई भी सपना नहीं, होता है साकार

(711)
21-12-2019
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद

1 Like · 231 Views
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