दोहा लिखना सीखे- राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’, टीकमगढ़
आलेख- “दोहा लिखना सीखे”-
दोहा साहित्य में एक बहुत लोकप्रिय पद्य विधा है। यह एक मात्रिक छंद है। संत तुलसीदास, कबीरदास, बिहारी आदि प्राचीन कवियों ने दोहे लिखकर खूब प्रसिद्धि पायी है।
मात्र दो पंक्तियां की बहुत छोटी रचना होती है जिसमें चार चरण होते हैं। पहले और तीसरे चरण में 13 -13 मात्रायें एवं दूसरे और चौथे चरण में 11-11मात्रायें होती है एक पंक्ति में कुल 13 मात्राएं होती है। आइये हम जानते है लोहा लिखने के प्रमुख नियम कौन कौन से हैं-
दोहा की प्रमुख विशेषताएं एवं नियम-
1- दोहा पूर्ण लयबद्ध होना चाहिए।
2- दोहा में कुल चार चरण होते हैं। दोहा के पहले और तीसरे चरण में 13-13 मात्राएं एवं दूसरे और चौथे चरण में 11-11मात्राएं होनी चाहिए। एक दोहा में कुल 24-24 मात्राएं होती हैं। दोहे के चारों चरण परस्पर संबद्ध होना चाहिए।
3- दोहे के पहला एवं तीसरे चरण के समापन में 2-1-2 (SIS)मात्रा होनी चाहिए SIS में गुरु S की पूर्ति दो लघु (II) मात्रा से भी हो जाती है। दूसरे और चौथे चरण के अंत में 2-1मात्रा होनी चाहिए।
4-मात्रा विधान में शुरूआत 1-2-1 से नहीं होनी चाहिए।
5- दोहे का तुकांत सही होना चाहिए।
6- दोहा का भाव, शिल्प सुंदर होना चाहिए।
7- दोहा के भाव व अर्थ स्पष्ट होना चाहिए।
8- दोहा शिक्षाप्रद एवं संदेश स्पष्ट होना चाहिए।
9- दोहा में यथा संभव हिंदी के तत्सम या तद्भव शब्दों का अधिक से अधिक प्रयोग करना चाहिए।
10- क्षेत्रीय बोली में लिखे दोहों में हिंदी एवं अन्य भाषाओं के कुछ अपभ्रंश शब्द अति आवश्यक होने पर कभी-कभी प्रयोग जा सकते हैं।
11- दोहा एक मात्रिक छंद है ।
12- अ इ उ ऋ स्वर लघु या ह्रस्व होते हैं । आ ई ऊ ए ऐ ओ औ स्वर गुरु या दीर्घ हैं । अं अः अयोगवाह हैं मात्रा के रूप में ये भी दीर्घ हैं ।
13- यदि किसी लघु अक्षर के बाद संयुक्त अक्षर या व्यंजन (आधा अक्षर) आता है तो पहले का लघु अक्षर गुरु या दीर्घ गिना जाता है
जैसे पत्र कर्म सन्न रक्षा कक्षा शिक्षा भव्य अज्ञ यज्ञ आदि। दूसरा अक्षर यथावत लघु या गुरु ही रहेगा । रक्षा 2 2, कर्म 2 1
14- अनुस्वार युक्त अक्षर गुरु या दीर्घ गिना जाता है पर अनुनासिक या चन्द्र बिन्दी युक्त अक्षर लघु है । चन्द्र बिन्दी शिरोरेखा के ऊपर इ ई ए ऐ ओ औ के मात्रा चिह्नों के साथ बिन्दी के रूप में ही लगती है । पंचम वर्ण का प्रयोग भी अनुस्वार की तरह किया जाता है ।आधा पंचम वर्ण भी पूर्व अक्षर को गुरु में बदल देता है । जैसे गंगा चंचल डंडा पंत कंपन आदि।
15- दो आधे अक्षर एक ही माने जाते हैं । वर्त्य में र् और त् दो संयुक्त व्यंजन हैं पर इनसे एक मात्रा ही बढेगी ।
16- प्रथम क्रम ग्रह में प् क् ग् पहले वर्ण लघु नहीं हैं इससे ये गुरु नहीं होंगे । ऋ की मात्रा वाले अक्षर भी लघु गिने जाते हैं । जैसे गृह स्पृह नृप।
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आलेख-
श्री राजीव नामदेव “राना लिधौरी”
संपादक आकांक्षा पत्रिका
अध्यक्ष मप्र लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे शिवनगर कालोनी टीकमगढ़ (मप्र)भारत
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