दोहा पंचक. . . . मजबूर
दोहा पंचक. . . . मजबूर
आँखों से ही दूर अब , है आँखों का नूर ।
बदले इस परिवेश में, ममता है मजबूर ।।
वर्तमान ने दे दिया, माना धन भरपूर ।
लेकिन कितना कर दिया, मिलने से मजबूर ।।
धन अर्जन करने चला, सात समंदर पार ।
मजबूरी ने कर दिया, सूना घर संसार ।।
आँखों से झर -झर बहे, अन्तस के उद्गार ।
धन अर्जन के स्वप्न से, बिखर गया घर -बार ।।
नवयुग की यह नौकरी, कहाँ- कहाँ भटकाय ।
छोड़ – छाड़ परिवार को, दूर कहीं ले जाय ।।
सुशील सरना /31-8-24