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31 Aug 2024 · 1 min read

दोहा पंचक. . . . मजबूर

दोहा पंचक. . . . मजबूर

आँखों से ही दूर अब , है आँखों का नूर ।
बदले इस परिवेश में, ममता है मजबूर ।।

वर्तमान ने दे दिया, माना धन भरपूर ।
लेकिन कितना कर दिया, मिलने से मजबूर ।।

धन अर्जन करने चला, सात समंदर पार ।
मजबूरी ने कर दिया, सूना घर संसार ।।

आँखों से झर -झर बहे, अन्तस के उद्गार ।
धन अर्जन के स्वप्न से, बिखर गया घर -बार ।।

नवयुग की यह नौकरी, कहाँ- कहाँ भटकाय ।
छोड़ – छाड़ परिवार को, दूर कहीं ले जाय ।।

सुशील सरना /31-8-24

2 Comments · 42 Views

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