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9 Aug 2019 · 1 min read

दोहा-कृषक

कृषक यही सोचे खड़ा, कितना था मशगूल।
फसलें बोकर अब लगे, कर बैठा वो भूल।।

सूरज के इस ताप को, मौसम देता मात।
आई है ठंडक लिए, प्यारी सी बरसात।।

महक रही है हर दिशा, कृषक बो रहे धान।
देकर अनाज देश को, भूखा रहे किसान।।

विकास क्रम में वन कटे, धरती उगले आग।
जल ख़ातिर अब सब लड़ें, नहीं सकोगे भाग।।

रासायन अब अन्न में, हर घर में बीमार।
मानवता धूमिल हुई, लालच हुई सवार।।
***********************

✍️आकिब जावेद

Language: Hindi
3 Likes · 372 Views
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