#दोहावली
धूप प्रेम की जो मिले, समझूँ शीतल छाँव।
पहुँच जहाँ मन शाँत हो, बड़ा शहर से गाँव।।
प्रीतम गर्मी ज्येष्ठ की, सूखे नद अरु कूप।।
गर्म हवा ने ले लिया, लू का भीषण रूप।।
गर्मी से बेहाल हैं, पशु पक्षी सब लोग।
वर्षा मुसलाधार हो, तभी शाँति संयोग।।
तपन धरा की दूर हो, बरसें घन चहुँ ओर।
फ़सलों को पोषण मिले, जीवों को सुख छोर।।
प्रीतम आँधी प्रेम की, साफ़ करे मन भेद।
देख जगत् मन बद हुआ, करे उसी से खेद।।
यौवन के उन्माद में, मस्ती का हर रंग।
नशा ग़ज़ब ऐसा चढ़े, लगती फ़ीकी भंग।।
भीषण भ्रष्टाचार में, नेताओं के गान।
भोली जनता कपट से, भूली मत का ज्ञान।।
प्रेम करें सब सत्य से, फैले जग अनुराग।
मधुर बनें संबंध सब, बुझे बुराई आग।।
बहुत मनोरम दृश्य वह, जग मधुबन-सम रीत।
फूलों-सम सब लोग हों, ले ख़ुशबू के गीत।।
जीते वह हर हाल में, नीति चले जो नेक।
नेक रीति के रंग में, बजे सफलता टेक।।
#आर. एस. ‘प्रीतम’
#सर्वाधिकार सुरक्षित दोहे