जो लिखा नहीं.....लिखने की कोशिश में हूँ...
बाधाएं आती हैं आएं घिरे प्रलय की घोर घटाएं पावों के नीचे अंग
हर खुशी पर फिर से पहरा हो गया।
*धन्य करें इस जीवन को हम, परहित हर क्षण जिया करें (गीत)*
मै भटकता ही रहा दश्त ए शनासाई में
Love
Abhijeet kumar mandal (saifganj)
दो सहोदर
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
23/125.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
खैर जाने दो छोड़ो ज़िक्र मौहब्बत का,
-0 सुविचार 0-
विनोद कृष्ण सक्सेना, पटवारी
गणतंत्र के मूल मंत्र की,हम अकसर अनदेखी करते हैं।
आप वही बोले जो आप बोलना चाहते है, क्योंकि लोग वही सुनेंगे जो
जो ये समझते हैं कि, बेटियां बोझ है कन्धे का
मेरी ख़्वाहिशों में बहुत दम है
मेरी हर इक शाम उम्मीदों में गुजर जाती है।। की आएंगे किस रोज