दोस्त
मैने कुछ यादों के पन्ने पलटे तो,
कुछ चेहरे दिखाए दिए,
कुछ चेहरे याद आए।
लेकिन अब वो चेहरे,
कही शहर की भीड़ में खो गए,
कुछ अपने ख्वाबों में उलझ गए,
कुछ भूल ही गए।
क्या रिश्ता था अपना,
ना ज़िंदगी में कुछ खोने का गम था,
और न पाने का ,
बस खुशी से उन दोस्तों से दोस्ती निभाने का मन था।
लेकिन अब वो वक्त कहां,
सब व्यस्त हो गए अपने-अपने कामो में ,
अब तो किसी के पास वक्त ही नहीं रहा।
अब बस कभी कोई इंस्टाग्राम,फेसबुक,
पे मिल जाया करेगा।
वक्त क्या बदला की ,
वक्त के साथ सब कुछ बदल गया।
ना वो पहले की तरह साथ देने वाले दोस्त रहे।
अब तो केवल मतलब वाले ही दोस्त बचे,
अब वो यारों वाली यारी कहां,
बस अब सब कहने की बाते बची,
और कुछ यादें बची,
बस अब कुछ यादें ही बची।
@ सुधा