दोस्ती पर सब कुर्बान
सब कुर्बान दोस्ती पर हयात क्या है?
गुमसुम से बैठे हो कहो बात क्या है?
रहने भी दो हया छोड़ो उदासियाँ।
चाँद-से चेहरे पर हँसे रात क्या है?
फ़ौलाद का सीना है यार का न डर।
शिला आगे शीशे की औकात क्या है?
प्रेम दो दिलों का मिलन है खेल नहीं।
आगे रीति-रिवाज़ों की बारात क्या है?
इन आँखों में आँसू सहन ना होते।
फिर दिल पर ग़मों की ये बरसात क्या है?
“प्रीतम”प्रीत में ग़म जहां का उठा लूँ।
हौंसले आगे संकट की जात क्या है?
*******राधेयश्याम बंगालिया”प्रीतम”
*****************************