देश ने हमें पुकारा है
देश की सरहदों ने आज हमें पुकारा है।
निभाना तो अब आज फ़र्ज़ हमारा है।
कब तक लड़ते रहेंगे आपस में हम सब ?
क्यूँ एक दूसरे का लहू लगे अब प्यारा है ?
क्यूँ टूट रहा देश हमारा अब कई हिस्सों में ?
क्यूँ दिलों में आया ख़याल-ए-बंटवारा है ?
क्या भूल गये हम शहीदों के बलिदानों को ।
बहाया देश के लिए जिस ने लहू की धारा है ?
ये आज़ादी किसी विरासत से कम नहीं दोस्तों।
इसे जीतेजी खोना हरगिज़ नहीं हमें गवारा है।
हिंदुस्तान की मिट्टी से जन्मे हम देश दुलारे हैं।
मज़हब हो जो भी, हमें देश को देना सहारा है।