देवी महात्म्य अष्टम अंक * 8* महागौरी
देवी महात्म्य अंक 8
★महागौरी★
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दिवस आठवाँ नवराता का, नाम है महा गौरी के।
सकल पाप नष्ट हो जाते ,दर्शन से माँ गौरी के।
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चार भुजा की धारिणि मैया , हाथ मे डमरू बाजत है।
एक हाथ तलवार सुशोभित , बाकी कर मुद्रा धारित है।
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वर मुद्रा अभय मुद्रा धारी ,बायें दाएं हाथों में।
वाहन वृष पर करें सवारी , कृपादायिनी भक्तो में।
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बैल सिंह दोनों है वाहन , वर्णन मिलता ऐसा भी ।
तप से काली पड़ी शैलजा , दर्शन मिलता ऐसा भी।
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एक कथा जो प्रचलित है ,तुमको उसे बताता हूँ।
कैसे वाहन दो दो इनके ,बात वही समझाता हूँ।
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वृषभ तो वाहन था ही लेकिन , शेर को भी सौगात मिली।
तप से उठकर देखा मरियल ,सिंह बना क्यों पता चली।
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खाने आया था गौरा को ,पर लीन तपस्या में जाना।
मन मे सोचा उठे अगर तो ,खा जाऊंगा यह माना।
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पर इंतज़ार में उठने के ,सिंह अधर में झूल गया।
देख तेज और सम्मोहन , अपनी सुध बुध भूल गया।
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दिवस रात दिन बैठा रहकर , मरियल जीव बना राजा।
खुली तपस्या जब देवी की ,तो उसको बैठे देखा।
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अभय किया उसको देवी ने ,ओर वाहन अंगीकार किया।
तब से ही कहते है दोनों ,वाहन गौरी स्वीकार किया।
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कहते है तप में थी रत जब , पार्वती किसी जंगल मे।
शंकर निकले खोज खबर में ,मिली पार्वती जंगल मे।
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तप में काया काली हो गई, जब शंकर ने यह जाना।
गंगा जल से अभिषेक किया ,तब जाकर के पहचाना।
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निखरी शंख ,चन्द्र,अरु कुंद के,फूल सदृश स्वेता देवी।
खिला रूप लावण्य खुलकर, विद्युत कांति पर्णा देवी।
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सब कुछ स्वेत वर्ण का है,वस्त्र आभूषण या काया ।
महा गौरी का जीवन माना ,केवल आठ वर्ष का पाया।
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रंग गुलाबी भी स्वेता को, मन से खूब लुभाता है।
मंगल शुक्र चन्द्र का संगम ,पिंगल वर्ण बनाता है।
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बल बुद्धि को देने वाला ,पिंगल वर्ण कहाया है।
इसमें शुक्र प्रभावी होता ,मंगल चन्द्र सहाया है।
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पहनो पिंगल खाओ पिंगल ,ओर बिछाओ पिंगल ही।
पिंगल बांटो पिंगल पाओ ,भोग लगाओ पिंगल ही।
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शक्ति अमोघा दया अनोखी ,सब पर गौरी करती है।
जन्म जन्म का कल्मष हर के ,पल में निर्मल करती है।
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केवल दर्शन भर करने से ,गौरी खुश हो जाती है।
पुण्य अनेको देती मैया , पाप सभी हर जाती है।
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ध्यान पादारविन्द में रखकर , पंचोपचार करे पूजा।
करुणा करती अभय दात्री ,इससे हटकर मार्ग न दूजा।
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ओर ओषदी मैं मा गौरी ,तुलसी बनकर मिलती है।
आठ वर्ग के रूप में तुलसी ,कलियुग में भी खिलती है।
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सब रोगों का शमन करें ,भूख नही लगने देती।
तुलसी यानी सत सयंम है ,माता ही इसको देती।
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भोग लगाओ हलुआ पूरी का ,या मीठा हो थोड़ा सा।
स्वेत चूनर पहनाओ माँ को , बांटो कपड़ा थोड़ा सा।
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और लिखे क्या मूरख ‘मधु’ ,महागौरी के बारे में।
एक रश्मि सी अक्ल है ,जिमि होती छोटे तारे में।
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सब मंगल को करने वाली ,शिव की शक्ति तुम्हे प्रणाम।
शरण तुम्हारे आया हूँ मैं ,क्षमादान कर रखो धाम।
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कलम घिसाई
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मधुसूदन गौतम
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ध्यान मंत्र
श्वेते वृषे समारुढा श्वेताम्बरधरा शुचिः | महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा ||
“सर्वमंगल मांगल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके. शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते..”।
या देवी सर्वभूतेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।