‘देवरापल्ली प्रकाश राव’
यथा नाम तथा काम,
बेच चाय प्रातः शाम,
ऐसी शक्ति को प्रणाम,
किया जन सेवा काम।।
नाम था प्रकाश राव,
लोक सेवा का था चाव,
मृदु सरल स्वभाव,
भाया कभी न विश्राम।
बस्ती के गरीब बाल,
बदहाल नौनिहाल,
देखी जो बुरी कुचाल,
बना बैठे विद्या धाम।
चाय से हुआ जो लाभ,
बाँट दिया दो से भाग,
दान रस पाग – पाग,
दिया पाठशाला नाम।
जग में अनेक बार,
किया महा उपकार,
दे दी दान रक्त धार,
याद रखेगा संसार।
शिक्षा की जगा के आस,
बुझा डाली तीखी प्यास,
बाल जो भी था उदास,
कर गया नैया पार।
आई ऐसी काल रात,
छूट गया भ्रात तात,
टूट गया रुग्ण पात,
छोड़ चला वो संसार।
नाम भी प्रसिद्ध हुआ,
काम भी प्रसिद्ध हुआ,
स्थान भी प्रसिद्ध हुआ,
कोरोना से गया हार।
-Gn