देवघर यानी वैद्यनाथजी
देवघर यानी वैद्यनाथजी के हरिलाजोड़ी में एक शिलालेख था। अब गर्त में चला गया। ज्ञानी लोगो ने मार्बल का स्लैब रखकर इसे झांप दिया।
पुरातत्व के दृष्टिकोण से यह शिलालेख रोचक और कौतूहल पैदा करने वाला था। इसके लेख में ‘कृमिला’ शब्द था। सन 1869 में जेम्स डेविड बेगलर यहां पहुंचा था, जिसने इस शिलालेख की चर्चा की।
स्थानीय कुछ विद्वान इस हिसाब-किताब में लगे रहे कि हरिला जोड़ी ही हरितकीवन है। यही कृमिला भी है कालांतर का। …तो किसी ने इसे सिरे से नकार दिया। बेगलर ने भी कहा है कि कृमिला यहीं था।
वस्तुतः कृमिला या क्रिमिला एक विषय था। विषय राज्य की भांति का एक भूभाग था। कृमिला से संबंधित कई शिलालेख और ताम्रलेख बिहार में मिले हैं। समुद्रगुप्त के नालन्दा ताम्रलेख में, देवपाल के मुंगेर ताम्रलेख, नौलागढ़ अभिलेख, बालगुदर के तीन अभिलेखों व रजौना पुण्डेश्वरी अभिलेख में भी इसकी चर्चा मिलती है।
मुंगेर के ताम्रलेख में मुदयगिरी के जयस्कन्धावार में विवेकहरात मिश्र नामक ब्राह्मण को कृमिला विषय में अवस्थित मेषिका नामक ग्राम दान में दिए जाने का उल्लेख है।
पुराणों के अनुसार उशीनर के पुत्र कृमि ने कृमिला नामक एक पुरी को बसाया। कुछ विद्वान किऊल नदी के किनारे बसे अज्ञात नगर को कृमिला कहते हैं तो कुछ कटिहार-पूर्णिया के क्षेत्र को। लेकिन कृमिला पर आजतक अनुमानों की पोटली ही सेंकी गई है।
विदित हो कि हरिला जोड़ी देवघर शहर से लगभग 5 किलोमीटर उत्तर में रिखिया जाने वाली सड़क के किनारे ही बसा है। यहां शिवमंदिर है। बाद में विष्णु और काली का एक मन्दिर भी बनाया गया है। यहीं कुछ दूरी पर एक छोटा कुंड है जिसमें पानी भरा रहता है। मान्यता है कि इसमें स्नान करने से खुजली व अन्य चर्मरोगों से मुक्ति मिल जाती है। इस कुंड में बसनेवाली देवी को ‘खखोरनी मै’ कहा जाता है।
–उदय शंकर