देख तुम्हें जीती थीं अँखियाँ….
देख तुम्हें जीतीं थीं अँखियाँ,
रोएँ अब दिन-रैन।
खटते-खटते बीती उमरिया,
मिला न मन को चैन।
जब से तुमसे लगन लगी थी।
प्यास हृदय में जगन लगी थी।
फेर लिया तुमने मुख अपना।
टूट गया ज्यों हर सुख-सपना।
अधर मूक अवरुद्ध कंठ है,
पथराए से नैन।
पलभर तुम बिन रहा न जाए।
दर्द विरह का सहा न जाए।
विरह-विदग्धा बनी तापसी।
अब कैसे भी हो न वापसी।
कैसे बात करूँ मैं दिल की,
हलक न आए बैन।
कौन गमों की मदिरा ढाले ?
रह जाते रीते सुख-प्याले।
तन दुखता है, मन रोता है।
भाग्य कहाँ कह तू सोता है ?
ले दल-बल बेखौफ साथ में,
मार मारता मैन।
खटते-खटते बीती उमरिया,
मिला न मन को चैन।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)