दूसरा मौका
प्रत्येक रूप में ही अच्छा लगे, ये मोहब्बत तो आठवां अजूबा है।
पूरा जग है काॅंटों की शैय्या, मख़मली गुल तो केवल महबूबा है।
उसके जीवन से द्वंद्व दूर रहें, जो शान्त प्रीत के सागर में डूबा है।
प्रीत बिना न मन, न ही जन, यह वर्षों पुराने इश्क़ का तजुर्बा है।
घृणा से भरी इस दुनिया में, प्रीत का रस फिर से घुलना चाहिए।
प्यार व तकरार, इन दोनों को, एक दूसरा मौका मिलना चाहिए।
कभी प्रेमियों का सच्चा प्यार, लोगों के षड्यंत्र में फंस जाता है।
ज़माने की बेड़ियों का कांटा, उनके अंतर्मन में ही धंस जाता है।
लगती है ऐसी भीषण आग, इश्क़ का गुलिस्तां झुलस जाता है।
फिर हरियाली देखने को, हर आशिक आजीवन तरस जाता है।
पूरा चमन झुलस जाने के बाद, नई कलियों को खिलना चाहिए।
प्यार व तकरार, इन दोनों को, एक दूसरा मौका मिलना चाहिए।
जो इश्क़ का महत्त्व जान लेगा, तो यह निर्दयी ज़माना बदलेगा।
जब बदलाव की पुरवाई चलेगी, तब इश्क़ का फसाना बदलेगा।
प्यार न रहेगा मामूली चीज़, जब आशिक का नज़राना बदलेगा।
जिस रोज़ मुकम्मल होगा इश्क़, सोचने का ढंग पुराना बदलेगा।
इन बंदिशों को देखकर, प्रेमियों का हौंसला नहीं हिलना चाहिए।
प्यार व तकरार, इन दोनों को, एक दूसरा मौका मिलना चाहिए।