दूर बहुत दूर
शीर्षक:दूर बहुत दूर
न जाने क्यों मेरी सोच सिर्फ तुम तक
क्यो अटक कर रह गई हर पल सोचना
सिर्फ तुमको ही और
तुम्हें सोच कर फिर बस रह जाना बस तुम तक
तुम्हारे ख्यालों से बातें करना..
और खो जाना असीम सी गहराई तक
निकलने का मन ही नही होता प्रेम की उस गहराई से
मैने तुम में समाहित होने तक का सफर किया हैं
कैसे आसक्ति कम हो प्रयास करूँ तो
मन के अन्तस्तल में आवाज आती हैं क्या ये सब सम्भव हैं
फिर स्वतः ही प्रश्न का उत्तर अंतःकरण से जन्म लेता है
हाँ असम्भव कुछ नही होता चल उठ मेरे मन ओर
कर प्रयास एक सकारात्मकता की ओर फिर
लग गई उसी और कर्म में ओर स्वयम ही
मैंने तरीका ये भी खोज लिया अन्तःमन से
तुम्हें भूल जाने का तुमसे दूर जाने का..
ए मन दूर बहुत दूर तुझसे …
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद