दूरी सोचूं तो…
दूरी सोचूं तो इक सदी बीत गई हो जैसे लेकिन वो जैसे एक पल भी मेरे दिलों-दिमाग से ओझल नही हुआ।गुजरते वक्त की कहानी है जो कहानियों में बदल कर रह जायेगी गुजरी हुई यादें! उसे मालूम तो होगा ही बदलते हुए पलों की गजल अब कहीं दर्द में सिमट जाया करती है,मुझे भी एक सफर का मुसाफिर बनाकर उसने कहीं दूर जाने की कसम दी हो जैसे, नदियों की तरह मिलकर समुंद्र में खो जाना आसान होता है लेकिन मुश्किल हो जाता है उन्ही नदियों को उस समंदर में खोजना,,,वैसे ही मुश्किल हो जाता है यादों का जेहन में उतर जाने के बाद भूलना।उसकी आंखे ,,,आंखे शब्द आए न और में उसके बारे में उसके लिए कुछ लिख दूं शायद ही कभी हो पाएगा मुझसे,,इतने करीब से जो देखी है मैने उन्हें जैसे देखता है कोई अपने सपने को,अपने अपनों को,सागर की लहरों को,बारिश की बूंदों को,चमकते बादलों को,उड़ती हुई तितलियों को,,,देखा है मैने उसे सबाब की तरह…बेताब की तरह,,,महकते हुए गुलाब की तरह! 🌹… – Raghuvir GS Jatav
25J24✒️@वो वक्त और ये दिन.📝