दूरियाँ नजदीकियाँ
****दूरियाँ नजदीकियाँ*****
***********************
बढ़ रही हैं दूरियाँ ही दूरियाँ,
खो गईं कहीं पर नजदीकियाँ।
बोझ बनते जा रहे हैं रिस्ते,
निभ रहें हैं बता मजबूरियाँ।
कोई भी नहीं है दिल से मिले,
कर रहें सभी छुप के चोरियाँ।
व्यस्तता का आलम देखिए,
खो गई कहीं माँ की लोरियाँ।
पग पग पर झूठ बोलने लगे,
मस्तक पर चढ़ी हुई त्योरियाँ।
चिंता में हैं नींद आती नहीं,
खाने लगे नींद की गोलियाँ।
पश्चिमी सभ्यता में खो गए,
बिगड़ रहे हैं छोरे छोरियाँ।
साधन कूच को तैयार खड़े,
पर नजर ना आती सवारियाँ।
मनसीरत ढूंढता अपनापन,
दूर रहने की करें तैयारियाँ।
**********************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)