दुश्मन को कभी मित्र न मानो (एक बाल कविता)–आर के रस्तोगी
मिली कही तुलसी की माला |
लेकर उसे गले में डाला ||
तन पर अपने राख लगाई |
बैरागी सा रूप बनाया ||
बिल्ली चली प्रयाग नहाने |
चूहों से बोली,ऐ प्यारो ||
मैंने किये है हजारो पाप |
तुमको दिए कितने संताप ||
कर उन सब पापो का ख्याल |
मैंने छोड़ा अब जग-जंजाल ||
अब जाती हूँ तीर्थ करने |
राम राम रट रट कर मरने ||
अब तुम पकड़ो मेरा हाथ |
तीर्थ करो तुम मेरे साथ ||
चूहों न किया सोच विचार |
सत्तू बाँध हुये सब तैयार ||
जैसे बिल्ली पहुची पुल के पास |
बिल्ली करने लगी उनका नाश ||
ले ले खूब चबाने उनको |
दीदे मटकाए खाकर उनको ||
दुश्मन को कभी मित्र न मानो |
उसका कहा कभी मत मानो ||
आर के रस्तोगी
मो 9971006425