दुविधा
उस दिन एक युवा से बातचीत करने का
अवसर मिला,
वर्तमान परिपेक्ष्य पर चर्चा करने पर उसने कहा,
आजीविका कमाने का उद्देश्य उसके लिए
सर्वोपरि है,
अन्य ज्ञान की बातें, संस्कार, नीति, आदर्श सब भूख के सामने खोखली हैं,
दिन भर नौकरी की तलाश से थका मांदा जब वह घर लौटता है,
तब उसकी बाट जोहती जिज्ञासु माँ की प्रश्नवाचक आँखों का सामना नहीं कर पाता है,
प्रतिभा, ज्ञान एवं नैतिक मूल्य भ्रष्टाचार के अथाह सागर में डूबती नाव बनकर रह गए हैं,
जिसमें अपने संस्कार, मूल्य एवं आदर्श की तिलांजलि दे, कुछेक अनीति की पतवार के सहारे तर गए हैं,
उसके अंतर्निहित संस्कार एवं मूल्य उसे अनीति की पतवार थामने से रोक रहे हैं,
दिन प्रतिदिन चिंता, अवसाद एवं कुंठा के अंधेरे बादल उसके अस्तित्व को घेर रहे हैं,
उसकी स्थिति किंकर्तव्यविमूढ़़ त्रिशंकु बनकर
रह गई है,
उसकी जीवन नैया डूबने के कगार पर खड़ी प्रतीत हो रही है।