*दुलहिन परिक्रमा*
दुलहिन परिक्रमा
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अहिं हमर ज्योति छी सजनी,
अहिं छी हमर सद्ज्ञान ।
निज कष्ट सहलहुँ, तनिक नहिं कहलहुँ,
अहां छी बहुत महान।।
तनिक लेश नहिं अहां में देखलहुँ,
निज गौरव अभिमान।
अहां के क्रोध देखि क्रोध दूर भेल,
मिटल गहन अज्ञान।।
तामस अहां के जे हम देखलहुँ,
कालमुद्रा प्रचंड समान।
भयाकुल भऽ एकरे से कहलहुँ,
जन्म मरण पर ध्यान।।
अहां के प्रेम चंदा सन शीतल,
सब पर एक समान।
करूणा में अहां सन नहिं दूजा,
माँ जगदम्ब समान ।।
ममता भरल अछि हृदय में,
मन अछि सुधा समान।
अहाँ सन उपमा नहिं जग में,
करियौ निरुपम काम।।
कालभंवर के भंवरजाल में,
फंसि अछि व्याकुल प्राण।
मुदा एक विनती अछि सुनियौ,
धैर्य पर धरियौ ध्यान।।
सत्य, सादगी दुई मंत्र से,
करियौ भुवन कल्याण।
एक दिन सबसुख मिलत अहाँ के,
प्रभु के कृपा महान।।
मौलिक एवं स्वरचित
© *मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – २९/०६/२०२१
मोबाइल न. – 8757227201