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19 Dec 2021 · 1 min read

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग:30

अश्वत्थामा दुर्योधन को आगे बताता है कि शिव जी के जल्दी प्रसन्न होने की प्रवृति का भान होने पर वो उनको प्रसन्न करने को अग्रसर हुआ । परंतु प्रयास करने के लिए मात्र रात्रि भर का हीं समय बचा हुआ था। अब प्रश्न ये था कि इतने अल्प समय में शिवजी को प्रसन्न किया जाए भी तो कैसे?

वक्त नहीं था चिरकाल तक
टिककर एक प्रयास करूँ ,
शिलाधिस्त हो तृणालंबित
लक्ष्य सिद्ध उपवास करूँ।
===============
एक पाद का दृढ़ालंबन
ना कल्पों हो सकता था ,
नहीं सहस्त्रों साल शैल
वासी होना हो सकता था।
===============
ना सुयोग था ऐसा अर्जुन
जैसा मैं पुरुषार्थ रचाता,
भक्ति को हीं साध्य बनाके
मैं कोई निजस्वार्थ फलाता।
===============
अतिअल्प था काल शेष
किसी ज्ञानी को कैसे लाता?
मंत्रोच्चारित यज्ञ रचाकर
मन चाहा वर को पाता?
===============
इधर क्षितिज पे दिनकर दृष्टित
उधर शत्रु की बाहों में,
अस्त्र शस्त्र प्रचंड अति
होते प्रकटित निगाहों में।
===============
निज बाहू गांडीव पार्थ धर
सज्जित होकर आ जाता,
निश्चिय हीं पौरुष परिलक्षित
लज्जित करके हीं जाता।
===============
भीमनकुल उद्भट योद्धा का
भी कुछ कम था नाम नहीं,
धर्म राज और सहदेव से
था कतिपय अनजान नहीं।
===============
एक रात्रि हीं पहर बची थी
उसी पहर का रोना था ,
शिवजी से वरदान प्राप्त कर
निष्कंटक पथ होना था।
===============
अगर रात्रि से पहले मैने
महाकाल ना तुष्ट किया,
वचन नहीं पूरा होने को
समझो बस अवयुष्ट किया।
================
महादेव को उस हीं पल में
मन का मर्म बताना था,
जो कुछ भी करना था मुझको
क्षणमें कर्म रचाना था।
===============
अजय अमिताभ सुमन:
सर्वाधिकार सुरक्षित

Language: Hindi
2 Likes · 1 Comment · 231 Views
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