“दुर्भिक्ष”
“दुर्भिक्ष”
क्या बीतती है पूछो उससे
जिसने बच्चे बेच दिए,
पेट की आग बुझाने की खातिर
जिसने खुद को बेच दिए।
जमीन-जायदाद सब कुछ बेची
फिर बची ना कुछ,
किस-विध जीते वे लोग भला
अब कुछ मत पूछ।
– डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
“दुर्भिक्ष”
क्या बीतती है पूछो उससे
जिसने बच्चे बेच दिए,
पेट की आग बुझाने की खातिर
जिसने खुद को बेच दिए।
जमीन-जायदाद सब कुछ बेची
फिर बची ना कुछ,
किस-विध जीते वे लोग भला
अब कुछ मत पूछ।
– डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति